जानें, कितना दम है भारत में कोरोना के कम टेस्‍ट होने के दावों में

जानें, कितना दम है भारत में कोरोना के कम टेस्‍ट होने के दावों में

सुमन कुमार

कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में लॉकडाउन के दौरान घर में बैठे बैठे सोशल मीडिया और कई टीवी न्‍यूज चैनलों पर आपको ये सुनने को मिल रहा होगा कि भारत में अभी तक कोरोना के कम मामले इसलिए सामने आ रहे हैं क्‍योंकि यहां सरकार बहुत कम लोगों के टेस्‍ट करा रही है। मीडिया में एक खास विचारधारा (यहां वामपंथी पढ़ें) से जुड़े पत्रकारों ने बाकायदा इस बारे में मुहिम चलाई है कि सरकार जानबूझकर कम टेस्‍ट कर रही है ताकि कोरोना संक्रमण का सही आंकड़ा लोगों के सामने न आ सके। इसके लिए बार-बार ये पत्रकार दुनिया के दो तीन देशों का उदाहरण देते हैं‍ कि‍ इन देशों ने ज्‍यादा से ज्‍यादा टेस्‍ट कर अपने लोगों को सुरक्षित बनाने में सफलता पाई है। खासकर इस बारे में दक्षिण कोरिया, रूस और जर्मनी का उदाहरण दिया जाता है।

तो आखिर सच क्‍या है? क्‍या सच में भारत सरकार ने बहुत ही कम टेस्‍ट किया है और जो देश इस बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित हैं उन देशों में टेस्‍ट की क्‍या स्थिति है? अमेरिका, चीन, इटली, स्‍पेन, फ्रांस, इंग्‍लैंड, ईरान आदि देशों ने इस मामले में क्‍या रुख अपनाया है?

सबसे पहले बात करते हैं, इस बारे में इन सभी देशों द्वारा टेस्‍ट के लिए अपनाई जाने वाली गाइडलाइंस की। जनवरी में, जब इनमें से भारत समेत अधिकांश देशों कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया तक सभी देशों ने कमोबेश बचाव का एक ही रास्‍ता अपनाया था। विदेश से आने वाले लोगों की थर्मल स्‍कैनर से जांच और कोरोना के लक्षण वाले मरीजों की कोरोना संक्रमण की जांच। अगले एक महीने तक इसी गाइडलाइंस का पालन तकरीबन सभी देशों ने किया। फरवरी में जब इटली और स्‍पेन में मामले तेजी से बढ़ने लगे तब उन देशों में जांच में तेजी आई और बीमारी के लक्षण वाले हर मरीज की जांच करनी शुरू की गई। इसके बावजूद इटली में, जहां अब तक 20456 व्‍यक्ति कोरोना से मौत के मुंह में जा चुके हैं वहां कुल मिलाकर 10 लाख 46 हजार 910 लोगों की कोरोना जांच की गई है और इनमें से 1,59,516 लोग कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं।

बात करें अमेरिका की तो यहां कोरोना का पहला मामला 21 जनवरी को सामने आया था और दुनिया की इस महाशक्ति ने, जिसे अपने हेल्‍थ सिस्‍टम पर नाज है, 18 मार्च तक सिर्फ 7000 लोगों के टेस्‍ट किए थे। राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के प्रशासन ने कोरोना को सामान्‍य फ्लू बताकर खारिज कर दिया था। देश में यात्रा पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया गया था। नतीजा भारी संख्‍या में लोग बीमार होकर अस्‍पताल पहुंचने लगे और तब प्रशासन की नींद खुली। इसके बाद अमेरिका ने अपनी सारी ताकत लोगों का टेस्‍ट करने में झोंक दी। अगर आज की बात करें तो अमेरिका में 29 लाख से अधिक लोगों के टेस्‍ट किए जा चुके हैं। इनमे से 5 लाख 73 हजार से अधिक लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं और 22 हजार से अधिक अपनी जान गंवा चुके हैं। अमेरिका की स्थिति ये है कि वहां आज भी पूरे देश में लॉक डाउन नहीं लागू किया गया है और इसलिए संक्रमण के चेन को तोड़ने में सफलता नहीं मिल रही है।

अब बात करते हैं यूनाइटेड किंगडम की। कभी दुनिया पर राज करने वाले इस देश में अभी तक कोरोना के 88,621 मामले सामने आए हैं। यहां आम लोग तो छोड़‍िये, स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों को भी टेस्‍ट करवाने के लिए घंटों कतार में लगना पड़ रहा है और इसके बावजूद उनका टेस्‍ट नहीं हो पा रहा है। दिन भर कतार में रहने के बाद वो निराश लौटते हैं। वहां के अखबारों में इस आशय की खबरें लगातार आ रही हैं। आज तक के आंकड़े की बात करें तो यहां कुल 3,67,667 लोगों की ही जांच की गई है। यहां बीमारी से 11 हजार से अधिक लोग मर चुके हैं। इसी प्रकार स्‍पेन, जहां 1,69,496 लोग संक्रमण के शिकार पाए गए हैं, ने अब तक 6 लाख लोगों का टेस्‍ट किया है।

पूरी दुनिया को इस बीमारी का शिकार बनाने वाले देश चीन ने तो इस बारे में आंकड़ा ही नहीं दिया है कि उसने हकीकत में अपने देश में कितने लोगों का टेस्‍ट किया है।

अब हम बात करते हैं अपने देश की। सोमवार तक भारत के विभिन्‍न लैब्‍स में कोरोना संदिग्‍धों के 1,89,111 टेस्‍ट किए गए हैं जिनमें से 9352 ही कन्‍फर्म मामले सामने आए हैं। प्रति हजार लोगों में वायरस से संक्रमण का मामला दुनिया में सबसे कम की श्रेणी में है और ये स्थिति तब है जबकि टेस्‍ट सिर्फ उन्‍हीं लोगों के हो रहे हैं जो या तो किसी संक्रमित के संपर्क में आए हैं, विदेश से आए हैं और उनमें ये लक्षण है या इस बीमारी के गंभीर लक्षण के कारण अस्‍पताल के आईसीयू में भर्ती किए जाने की जरूरत पड़ी है। इसके बावजूद संक्रमित लोगों की दर बेहद कम है। अगर फ्रांस से तुलना करें तो वहां टेस्‍ट के मुकाबले संक्रमित लोगों की दर 40 फीसदी के करीब है जबकि भारत में ये 2 प्रतिशत से कुछ अधिक है। भारत में पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति है और कोरोना के लक्षणों या गंभीर स्थिति वाले मरीजों की अस्‍पतालों में कहीं कोई भीड़ नहीं लग रही है जैसी कि अमेरिका, इटली, यूके, स्‍पेन, ईरान तथा और कई देशों में देखने को मिल रही है। 130 करोड़ की भारी आबादी और देश में 30 जनवरी को कोरोना का पहला मामला सामने आने के बावजूद ढाई महीने बीत जाने के बाद भी स्थिति सरकार के नियं‍त्रण में है। महाराष्‍ट्र, तमिलनाडु, और दिल्‍ली जैसे राज्‍यों को छोड़ दें तो अन्‍य राज्‍यों में स्थिति पूरी तरह काबू में कही जा सकती है। जो भी लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि सरकार पर्याप्‍त टेस्‍ट नहीं कर रही है, उनसे ये पूछा जाना चाहिए कि आखिर टेस्‍ट किस बिना पर किया जाए? जब तक किसी व्‍यक्ति में बीमारी के छोटे से लक्षण भी नहीं दिखते हैं तब तक किस आधार पर टेस्‍ट किया जाए? अभी सरकार रोजाना 15 हजार से अधिक लोगों का टेस्‍ट कर रही है और इसमें भी कई लोगों को तो जबरन उनके घरों और छिपने की जगहों से निकालकर उनका टेस्‍ट और आइसोलेशन करवाना पड़ रहा है। जाहिर सी बात है कि पूरे देश में लॉकडाउन के सरकार के फैसले से इस बीमारी के चेन को तोड़ने में कामयाबी मिली है और बीमारी अब उन्‍हीं जगहों पर ज्‍यादा दिख रही है जहां लोग लॉकडाउन की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

 

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